Tuesday 5 November 2019

नये भारत की जासूसी सीरीज़ : जावेद अमर जॉन


''जावेद अमर जॉन"


नहीं मैं थ्रिलर बिलकुल नहीं पढता।
जब कोई मुझसे ये कहता है कि मैं रोमांस नहीं पढता, इसलिए आपकी बुक नहीं पढ़ पाया। सच तो ये है मुझे बुरा नहीं लगता। क्योंकि हर पाठक की अपनी पसंद होती है।  मेरी भी अपनी पसंद है। मैं किसी दबाव में किताबें पढ़ना पसंद नहीं करता।

एक पाठक होता है - नहीं पढ़ता और एक होता है- मुझे पढ़ना ही नहीं है। मैं दूसरे वर्ग में बिलकुल नहीं हूँ। 2016 में कमीना किताब से थ्रिलर पढ़ने की शुरुआत की और जावेद अमर जॉन से खुद को कनेक्ट होता महसूस करने लगा. इस बीच और भी कई थ्रिलर किताबें पढ़ीं पर वो कनेक्ट महसूस नहीं हुआ ।




मास्टरमाइंड इस सीरीज़ की मुझे अब तक की सबसे बेहतरीन किताब लगी थी लेकिन अंतर्द्वंद्व ने मेरे इस भरम को तोड़ दिया। किताब पढ़नी शुरू की तो सबसे पहले मेरा हुक पॉइंट ये होना था कि जावेद अमर जॉन अब आगे क्या करने वाले हैं। लेकिन एयरोप्लेन के गायब होने वाली मिस्ट्री ने मुझे नया हुक दिया।
 मैं पहले ही मलेशियन एयरलाइन के गायब होने वाली चीज़ों को कई बार देख सुन चुका था फिर इस किताब में उसका जिक्र होना मेरे लिये बहुत बड़ा हुक पॉइंट था।

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शुभानंद जी की कलम हर किताब के साथ नए पाठक जोड़ते जाती है। ये सीरीज हर किताब के साथ तगड़ी होते जा रही है। "जोकर जासूस" के बाद, "बदकिस्मत कातिल" इस सीरीज की दूसरी किताब थी और छोटी भी थी उसने मुझे हालाँकि उतना प्रभावित कभी नहीं किया। कमीना इस सीरीज की तीसरी किताब थी और बूम वहां से शुरू हुआ। एसी तेज़
रफ्तार रोचक कहानी जिसने हिलने तक न दिया और उस वक़्त ये मेरी फेवरेट थ्रिलर बन गई। इस बार ये किताब विस्तारित संस्करण के साथ दुबारा लौट आयी हैं। गलतिया कहाँ नहीं होती यहाँ मैं कहानी की गलती की बात ही नहीं कर रहा बात यहाँ उन शब्दों की थी जिससे कुछ पाठकों को आपत्ति थी. वैसे मेरे हिसाब से वो गलतियां थी भी नहीं लेकिन मैं इसका ज़िक्र इसलिए कर रहा हूँ ताकि आप "कमीना- विस्तारित संस्करण" मिस न करें।




हालाँकि सभी किताबे आपस में कनेक्टेड है पर हर किताब खुद में पूरी है; लेकिन कमीना-मास्टरमाइंड- अंतर्द्वंद एक साथ पढ़ना सबसे सही होगा।  इस सीरीज को जानना बहुत जरुरी होता जा रहा है मेरे लिए, हर बार नया मिशन और नये यूनिक साइड किरदार गढ़ना लेखक की क्रिएटिविटी का कमाल है।
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"कमीना" में जहाँ अभिषेक मिश्रा उर्फ़ मिर्ज़ा जिस तरह से टैक्सी ड्राइवर से हीरा चोर और ड्रग माफिया के चंगुल में फंसा, बेहद रोमांचक था।
वही "मास्टरमाइंड" में जेल वाले सीन, मर्डर मिस्ट्री, कोर्ट रूम सीन्स और आतंकवादियों की खतरनाक साजिश के रहस्य ने कई पाठको को प्रभावित किया । शायद ही वैसा कथानक और जेल के अनोखे सीन हिंदी साहित्य में पहले लिखे गये हों।
अंतर्द्वंद में कई ऐसी चीज़े हैं जिसे पढ़कर पिछली किताबों की कहानी फीकी लगने लगती है।
हर किसी का अपना अंतर्द्वंद दिखाया गया है। कोई देश के लिए लड़ रहा है कोई अपने प्यार को खोकर तो कोई खुद से खुद के अंतर्द्वंद्व  जूझ रहा है।
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जावेद अमर जॉन सीरीज नए भारत की कहानी है और इस पर फिल्म/टी वी; सीरीज की बात जारी है। जिसका जिक्र खुद लेखक मार्च में कर चुके हैं।
आनी भी चाहिए आखिर आज के युवा लेखकों में कितने लोग इस तरह की सीरीज पर काम करते हैं? और जो करते हैं उनके पाठक भी जरूर इस न्यूज़ से खुश होंगे।
मुझे लगता है जब ये दमदार फिल्म या किसी सीरीज में आएगी तो प्रसिद्धि और बढ़ेगी।

फ़िलहाल किताब पढ़कर इस थ्रिलर का मजा लें।
बिजी schedule के कारण किताबे कम पढ़ पा रहा हूँ पर कुछ किताबें छोड़ नहीं सकते।

मिथिलेश गुप्ता
लेखक- जस्ट लाइक दैट, तेरी इश्क़ वाली खुशबू, वो भयानक रात

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